Wednesday, December 1, 2010

जंगल में चुनाव (काव्य-कथा)

जंगल में आम चुनाव था, सभी जानवर चुनावी तैयारियों में व्यस्त थे
एक चुनावी सभा में वनराज सिंह जंगल के जानवरों को संबोधित कर रहे थे...
‘हमारे पूर्वजों ने शुरु से ही शासन किया है, आपसब पर ध्यान दिया है
हम चाहते तो राज करते रह सकते थे, लेकिन जंगल में क्रांति का बिगुल सुन
लोकतंत्र का आदर करते हुए,चुनाव का निर्णय लिया
और, स्वयं प्रत्याशी बनकर खड़े हैं, पुन: राज करने को अड़े हैं
मैं वादा करता हूं कि आप का ध्यान रखूंगा, जंगल के हित में काम करूंगा
जीतते ही मांस-भक्षण त्याग दूंगा, शाकाहारी बन जाऊंगा’
... ये सुनते ही एक जानवर थोड़ा कुलबुलाया, थोड़ा कसमसाया
और फिर जोर से चिल्लाया...
‘कुछ तो शर्म कीजिए, जानवर और इंसान में फर्क कीजिए
ऐसा वादा इंसानों में किया जाता है, कह के कुछ और कुछ और किया जाता है
अरे हम जानवर हैं इंसान नहीं, चाहे जैसे भी हैं बेईमान नहीं’

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 फरवरी 2018 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!