Thursday, March 11, 2010

बनारस… जिंदगी और जिंदादिली का शहर



(बनारस न मेरी जन्मभूमि है और न ही कर्मभूमि... फिर भी ये शहर मुझे अपना लगता है... अपनी लगती है इसकी आबो हवा और पूरी मस्ती के साथ छलकती यहां की जिंदगी... टुकड़ों-टुकड़ों में कई बार इस शहर में आया हूं मैं... और जितनी बार आया हूं... कुछ और अधिक इसे अपने दिल में बसा कर लौटा हूं... तभी तो दूर रहने के बावजूद दिल के बेहद करीब है ये शहर... मुझे लगता है कि आज की इस व्यक्तिगत महात्वाकांक्षाओं वाले इस दौर में, जहां पैसा ज्यादा मायने रखने लगा है, जिंदगी कम... इस शहर से हमें सीखने की जरुरत है...इस बार इसी शहर के बारे में...)


साहित्य में मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों के नौ रस माने गये हैं... लेकिन इसके अलावा भी एक रस और है, जिसे साहित्य के पुरोधा पकड़ने से चूक गये... लेकिन जिसे लोक ने आत्मसात कर लिया... वह है बनारस... जीवन का दसवां रस... जिंदगी की जिंदादिली का रस... जिसमें साहित्य के सारे रस समाहित होकर जिंदगी को नया अर्थ देते हैं... जिंदगी को मस्ती और फक्कड़पन के साथ जीने का अर्थ... कमियों और दुख में भी जिंदगी के सुख को तलाश लेने का अर्थ़...
बहुत पुराना है बनारस का इतिहास... संभवतः सभ्यता के विकास से जुडा हुआ... बनारस की प्राचीनता का उल्लेख करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार मार्क ट्वेन ने कहा है कि बनारस इतिहास से भी प्राचीन है... यहां तक कि किंवदन्तियों से भी... और यदि दोनों को मिला दिया जाय तो दोनों से प्राचीन... वेद-पुराणों से लेकर सभी धर्म ग्रन्थो में उल्लेख हुआ है बनारस का, अपने प्राचीन नाम काशी के मार्फत... महात्म्य इसका इतना कि सबसे बडे पुराण स्कन्द महापुराण में काशी महिमा को लेकर काशी खंड के नाम से एक अलग विभाग ही रच दिया गया... धर्मग्रन्थों में मोक्ष नगरी की ख्याति है इसकी... दूर दूर से आते हैं लोग यहां मृत्यु का आलिगंन करने... दुनिया में इकलौती जगह है यह जहां कहा जाता है कि मरने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है क्योंकि बाबा विश्वनाथ मरने वाले के कान में तारक मंत्र देकर उसका उद्धार कर देते हैं...
बनारस महज एक शहर नहीं है... बल्कि उससे आगे बहुत कुछ है... जिंदगी का भरपूर फलसफा है बनारस... अड़भंगी, मस्त-मौला और हिन्दू धर्म के सबसे अनूठे देव भोलेनाथ की नगरी है बनारस... और यह साबित भी होता है यहां के लोक जीवन में मस्ती की मिठास को देखते हुए... दुनिया का इकलौता शहर है बनारस जहां के लोग स्यापे में नहीं, जीने में यकीन रखते हैं... बेफिक्री और बिंदासपने के साथ जिंदगी को जीने में... दुनिया के कोने कोने से लोग आते हैं, बनारस को देखने समझने...
जिंदगी को हर पल जीने का दर्शन गढने वाला बनारस मरने की तहजीब भी सिखाता है, ताकी जिंदगी का जश्न जारी रहे... यहां हर पल जीवन का स्पन्दन महसूस होता है, क्योंकि यहां मृत्यु का भय नहीं सताता... सदियों पहले बनारस ने कबीर के माध्यम से इस भय को नकार दिया था- हम न मरब मरिहैं संसारा...
अपनी बोली बानी और अंदाज से अनूठा और सबसे अलग शहर है बनारस... भोजपुरी यहां की पारपरिक और लोक की भाषा है... भोजपुरी के आदि कवि कबीर के शहर बनारस में भोजपुरी का रंग निराला है... अपनी मिठास के लिये मशहूर भोजपुरी का रंग बनारस की आबो हवा में घुलकर और खिल उठता है... तभी तो यहां की बोली में अनिवार्य रुप से शामिल गालियां भी किसी को आहत नहीं करती... बनारस ने अपनी शैली में भोजपुरी को विशिष्ट पहचान दिलाई है देश दुनिया में... क्योंकि भोजपुरी यहां महज एक भाषा नहीं जीवन शैली है... जीवन को जीने का ढंग है... भोजपुरी को एक अलग तेवर दिया है बनारस ने...
यदि भारत को किसी एक जगह खोजना है, तो बनारस ही वह जगह है जहां पूरा हिंदुस्तान दिखाई पड़ता है... यहां सारे धर्म, संप्रदायों के लोग बसते हैं... देश के कोने कोने से आए लोग मिल जाएंगे, यहां की परंपरा और संस्कृति में अपने को घोलते हुए... बनारस की अपनी परंपरा और अपनी संस्कृति रही है... बनारस ने परंपरा से कुछ सीखा है कि नहीं ये कहना भले मुहाल हो, कितुं परंपरा ने बनारस से अवश्य सीखा है और अपने को समृद्ध किया है, ये जरुर कहा जा सकता है... बाबा विश्वनाथ के शहर बनारस ने उनके फक्कड़पने के साथ जीने का जो ढंग अपनाया उसे मध्यकाल में कबीर ने प्रखर रुप दिया और जिसे भारतेन्दु, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, बिस्मिल्लाह खान जैसों ने आगे बढाया और जिसे काशीनाथ सिंह जैसे साहित्यकार वर्तमान में और परवान चढा रहे हैं...
बनारस खास का नहीं, आम का... सबका शहर है... सबके लिए है... हमारे धर्मग्रन्थों मे लिखा है कि कोई कहीं जाए या न जाए, उसे एक बार काशी जरुर जाना चाहिए... और काशी में आकर कहीं नहीं जाना चाहिए... सच बात है, लेकिन उससे भी बडा सच यह है कि जिसने बनारस को देख लिया... बनारस को जान लिया... बनारस उससे कभी छूट नहीं सकता चाहे वह कहीं भी रहे... तभी तो बनारस में रहने वाले और बनारस को जानने समझने वाले एक ही स्वर में दुहराते हैं कि जो मजा बनारस में, वह मजा न पेरिस में न फारस में...

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