Sunday, February 14, 2010

जमूरे के कोने की जरुरत क्यों...?

दिल के साथ बहुत मगजमारी के बाद आखिरकार मैं भी ब्लॉग पर अवतरित हो ही गया... लेकिन ये यदा यदा ही धर्मस्य मार्का अवतार नहीं है... और आप अवतार शब्द को लेकर कुछ और सोचें इससे पहले साफ कर दूं कि अवतरित होना या अवतार लेना अपने वश में नहीं है और न ही ऐसी कोई ख्वाहिश है... इसका ठेका तो अपने देश में कुछ स्वयंभू अवतारी और चमत्कारी पुरुषों ने ले ही रखा है, जो चमत्कार भी दिखाते हैं और अवतार भी... और अवतार और चमत्कार के चक्कर में लोगों को घनचक्कर की तरह नाच नचाते हैं...
दरअसल अवतरित होने से यहां आशय मेरा सिर्फ ब्लॉग पर लिखने भर से है... अब मैंने ब्लॉग बना लिया है, तो हो सकता है कभी कभी कुछ लिखूं भी... ब्लॉग पर आने से पहले मेरे सामने जो सबसे बड़ा सवाल था कि आखिर क्यों? ब्लॉग लिखकर मैं क्या तीर मार लूंगा...? और इस सवाल का सीधा सा जवाब है कि मैं ब्लॉग के जरिए कोई तीर मारने भी नहीं आया हूं... ये तो सिर्फ इस ग्लोबल दुनिया में उस कोने की तलाश है, जो अपना हो... जहां अपने हों... जिसपर मालिकाना हक सिर्फ चंद लोगों का न हो, बल्कि जो सबके लिए हो... दुनिया में मदारी बहुत हैं और हर कोई मदारी बनना चाहता है, लेकिन कोई उस जमूरे की आवाज नहीं सुनता जो उसे मदारी बनाता है... ये कोना जमूरे की आवाज को सामने लाने की कवायद भी है... यही नहीं, बहुत उलझी है नक्शे में गोल गोल दिखती ये दुनिया और बेतरतीबी से बहुत बंटी भी... जिसके सवाल बेहद उलझाते भी हैं... अपना कोना उन सवालों से जूझने और जवाब पाने की एक छोटी सी कोशिश भी है...
(इति ब्लॉग प्रस्तावना)

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